खड़ी उस झुग्गी के बाहर, सोचती द्रुपद राजकुमारी | कुछ क्षण पहले तक, नियति लगती थी सखी हमारी || एक राजकुमारी का स्वयंवर रचा था, प्रतियोगिता का उद्देश्य और मान बड़ा था | होता भी क्यूँ ना, यज्ञसैनी का विवाह मंडप सजा था || अजन्मी, प्रकटी यज्ञाग्नि से, एक ओजस्वी अप्रतिम सुंदरी, आयी कष्टों का भाग्य लेकर, देवों का संकल्प लेकर | भारत वर्ष का भाग्य बदलने, अपने लिए बस धर्म लेकर || खड़ी उस झुग्गी के बाहर, सोचती द्रुपद राजकुमारी | कुछ क्षण पहले तक, नियति लगती थी सखी हमारी || अभी कुछ क्षण ही बीते थे, अपने सौभाग्य को सराहते, चली थी बीहड़ वन अपने विजेता संग इठलाते | वो महल के सुख भोग से बड़ा आनंद था , पथरीले रास्तों पर भी कंकड़ों का कोई दर्द ना था || माता से मिलने को तत्पर, हर्षित पांडव चल रहे आकुल | अर्जुन का था अद्भुत पराक्रम, रंगमंच में ना था ऐसा कोई धनुर्धर || "देखिये माता! कैसा दान है पाया, धनंजय ने सौभाग्य है लाया |" ध्यान मग्न भूल गयीं कुंती, कि देखूं एक पल पलट कर | बस कह दिया, "सब का अधिकार समान है, ले लो जो है...
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