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Showing posts from March, 2023

सोचती द्रुपद राजकुमारी - 1 - कन्या का दान

खड़ी उस झुग्गी के बाहर, सोचती द्रुपद राजकुमारी |  कुछ क्षण पहले तक, नियति लगती थी सखी हमारी ||  एक राजकुमारी का स्वयंवर रचा था, प्रतियोगिता का उद्देश्य और मान बड़ा था |  होता भी क्यूँ ना, यज्ञसैनी का विवाह मंडप सजा था || अजन्मी, प्रकटी यज्ञाग्नि से, एक ओजस्वी अप्रतिम सुंदरी, आयी कष्टों का भाग्य लेकर, देवों का संकल्प लेकर |  भारत वर्ष का भाग्य बदलने, अपने लिए बस धर्म लेकर ||  खड़ी उस झुग्गी के बाहर, सोचती द्रुपद राजकुमारी |  कुछ क्षण पहले तक, नियति लगती थी सखी हमारी ||  अभी कुछ क्षण ही बीते थे, अपने सौभाग्य को सराहते, चली थी बीहड़ वन अपने विजेता संग इठलाते |  वो महल के सुख भोग से बड़ा आनंद था , पथरीले रास्तों  पर भी कंकड़ों का कोई दर्द ना था ||  माता से मिलने को तत्पर, हर्षित पांडव चल रहे आकुल |  अर्जुन का था अद्भुत पराक्रम, रंगमंच में ना था ऐसा कोई धनुर्धर ||  "देखिये माता! कैसा दान है  पाया, धनंजय ने सौभाग्य है लाया |" ध्यान मग्न भूल गयीं कुंती, कि देखूं एक पल पलट कर |  बस कह दिया, "सब का अधिकार समान है, ले लो जो है  मिल बाँट कर" ||  अवाक् सब खड़े, सोचते समझते इसका क्या