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Showing posts from October, 2024

इंसानियत के सपने

अचानक आंख खुली| बाहर देखा तो, अभी अंधेरा था ; कुछ समझ नहीं पाई रात थी, या भोर का सवेरा था | बड़ी जोरो से कुछ कुत्तों के भौंकने की आवाज़ें थी ; उफ़्फ़ ये शोर, क्या इन कुत्तों को दिन और रात की तहज़ीब नहीं थी?   कुछ दस मिनट चला ये तंटा,  और फिर से वही समय का था सन्नाटा | मैं फिर सो गई अपने बिस्तर में; ढूंढते, अररर चादर कहां गई इस ठंड में || सुबह उठ पता चला, किसी ने एक कुत्ते पर गाड़ी चढ़ा दी | वो रो रहा था और बाकियो ने भी गुहार लगा दी || अब रास्ता हो या फुटपाथ, ये भला कोई सोने की जगह है? फ़िर गलती से कुचले जाने में गलती भी किसकी है? इंसानों को एम्बुलेंस लेने के लिए कुछ मिनटों या घंटों में तो आ ही जाती है | बाकी तड़प के मर जाते हैं, फिर एक दो दिन में नगर निगम की गाड़ी लाश उठा ले जाती है || हाँ अदालत में इंसानों के लिए मुक़द्दमा भी होता है | पर बाकी का तो बस शोर ही होता है || एक साहब ने कहा मेरे रास्ते में कुत्ते नज़र ना आएं बस; मैंने सोचा वर्क फ्रॉम होम का गहरा है असर सच | काश! मैं भी ये कह पाती, मेरे रास्ते में ट्रैफिक ना आये;  ना पाला पड़े ऐसे इंसानों से जो अंदर से हो गए हैं विरक्त || फि